ग़ज़ल
ग़ज़ल
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देखते थे जिन्हें इक नज़र के लिए
वो नज़र भी न आए नज़र के लिए
कल सुबह हम उन्हें कुछ इशारे किए
रात तक रूक गयें फिर असर के लिए
एक दिल था हमारा उसे तोड़कर
वो तो कुछ भी न छोड़े कसर के लिए
आपको भी सुना है सफ़र चाहिए
जिंदगी है हमारी सफ़र के लिए
कल सुबह कब कहाँ फिर ठिकाना मिले
आज पहलू में ले रातभर के लिए
इक नज़र में हमे वो जो घायल कियें
फिर नज़र फेर ली उम्र भर के लिए
मैं उसे छोड़ कर लौट घर जब चला
वो मुझे ग़म दिया है बसर के लिए
हम तो जिंदा हैं की मौत आये कभी
कौन जीता है अब रहगुजर के लिए
एक अरसा हुआ हम को 'बेघर' हुए
घर में ही तरसते हम हैं घर के लिए!
