ग़ज़ल
ग़ज़ल
रात की याद में दिन गुजारा गया
देखते देखते वक्त सा रा गया
हँस दिए आप भी गम मिरा देख कर
आपका क्या गया सब हमारा गया
वो न शामिल हुए मयकशी में कभी
आँख में फिर कहाँ मय उतारा गया
जी न पाते कभी दूर हो के कहीं
उन के पहलू में मरना गवारा गया
आपका दोष है आपको देखकर
आप के प्यार में दिल बिचारा गया
प्यार उसने किया बात इतनी सी थी
फिर भी आशिक वहां एक मारा गया
हम तो 'बेघर' रहे हम तो बद नाम थे
नाम से क्यूँ हमें फिर पुकारा गया।
