अपने घर पर...
अपने घर पर...
अनगिन ख़्वाब सजाये हमने अपने घर पर
स्वप्नों को नजदीक से जा कर देखा हमने अपने घर पर
आशाओं मे फलता फूलता एक जीवन
सारी परिभाषाएं पढ़ कर गढ़ ली हमने अपने घर पर
जहा बचपन को देखा मेल मिलाव मे अपनेपन देखा
ढलती उम्र को हमने नंगे पाव ही चलते देखा अपने घर पर
और भी देखा जो बूढी आखों ने एक उगते सूरज
को ढलते देखा, पलते देखा एक जुगुनू को अपने घर पर
एक अनहोनी सा किस्सा था मै बस कुछ ही पल का
हिस्सा था मैं सब जाग रहे थे मैं सो रहा था अपने घर पर।