भूख
भूख
अरे ये भूख ही तो है साहब
जो हम भटक रहे हैं
कभी मिला भर पेट खाना
तो कभी बिना खाये आशू टपक रहे है
शायद मा बाप किसी हादसे
का शिकार हुए होंगे
जो भी कुछ बचा होगा हमारा
सब किसी अपने ने छीने होंगे
कुछ याद नही हमकों
शायद रोते रोते इतने बड़े हुए है
रोटी ही है सफर जिंदगी का
तो बस रोटी के लिए लड़े हुए है।