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Husan Ara

Abstract Children Stories

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Husan Ara

Abstract Children Stories

अनकहे सवाल

अनकहे सवाल

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माँ,

इस अनजान शहर में

सबसे दूर रहना पड़ता है।

कितनी कोशिशें की थी इस मंज़िल को पाने की

इसलिए सहना पड़ता है।


माँ,

हर बार जब बात होती है

बस तुम सबकी कुशल क्षेम पूछ जाता हूँ

मगर मन में हैं कुछ सवाल

जो तुमसे पूछ नही पाता हूँ


माँ,

क्या अब भी हमारा घर

वैसा ही तुम्हारे प्यार सुकून से सजा रहता है

रातों में चांदनी छिटकती

सुबह में लाली, दिन में रौशनी से भरा रहता है


माँ,

क्या अब भी मेरी बॉल वहीं फ्रिज पर रखी रहती है

क्या मेरी यूनिफॉर्म अभी भी, खूंटी पे टँगी रहती है

वो पतंगे जो लूटी थी, देखना पलँग के नीचे छुपाई थीं

क्या अब भी मेरी पसंद की चीज़ों से अलमारी भरी रहती है


माँ,

मेरी साइकिल भी ,कोने में खड़ी रहती होगी

मेरी पुरानी किताबें भी उसी दराज़ में पड़ी रहती होंगी

पापा का चश्मा लगाकर अखबार पढ़ना, पुराने गाने सुनना

क्या अब भी सब वैसा है

पूछुंगा तो हँसोगी कि वो सब्ज़ी वाला दूध वाला और

काम वाला पुराना लड़का कैसा है


माँ,

अब तो कोई मेरी शिकायत करने मोहल्ले से न आता होगा

पूरा दिन दंगा मस्ती से कोई तुम्हारा सिर न दुखाता होगा

दोपहर में भी कुछ देर सो लेती होंगी अब तो

पर जानता हूँ तुम्हे ये सब अब बिल्कुल ना भाता होगा


माँ,

तुमसे कहता था कहीं बाहर चलते हैं घर मे बोर हो रहा हूँ

वो बोर होना कितना अच्छा था ना माँ

तुमसे कहता था कभी बाहर का खाना मंगवा दिया करो

वो घर का खाना कितना अच्छा था ना माँ


माँ,

पूछना चाहता हूँ और भी बहुत से सवाल

लेकिन मेरी वाणी को शब्द भिगोते नही

डर लगता है रो न पडूँ पूछते पूछते

पर तुम कहती हो, लड़के कभी रोते नही...!!!


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