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Husan Ara

Tragedy

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Husan Ara

Tragedy

ग़लती

ग़लती

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ग़लती ये हुई कि ,किसी को आईना दिखा बैठे,

अपने सुकून में खुद ही हम आग लगा बैठे ।।


सच बोलें या चुप रहें, दोनो हालात में फसें रहे,

ग़लती ये रही कि झूठ बोलने का हुनर भुला बैठे।।


कुछ रिश्ते हमसे ताउम्र खफा ही रहे , 

खुश करने को चाहे हम अपनी हस्ती मिटा बैठे।।


देखता कहां हूं अब रात में बैठकर आसमां को,

अब तो सब हमको दिन में ही तारे दिखा बैठे ।।


जलाता रहा खुद को ही, दूसरों की खताओं पर ,

अपनी सफाईया देते देते ,पूरी उम्र बिता बैठे ।।


छुपाते रहे ज़माने से हम ज़ख्म और ग़म अपने,

उसने कुछ इस तरह पूछा, सब आंसू बहा बैठे।।


आज वही लोग खड़े हैं मुखालफत में मेरी ,

जिन्हे हम अपना मानकर ,सब हुनर सिखा बैठे।। 



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