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Sai Mahapatra

Abstract Tragedy Inspirational

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Sai Mahapatra

Abstract Tragedy Inspirational

मजदूर

मजदूर

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हां मैं मजदूर हूं

हां मैं आज पैदल चलने केलिए मजबूर हूं

दो वक्त की रोटी के खातिर

मैं अपने गांव को छोड़कर सहर आया था


अपनी परिवार की पेट भरने के खातिर

मैं यहां अपना पसीना बहा रहा था

आज ना ज़ाने मेरे भगवान इतने

निष्ठुर क्यूँ हो गए हैं मेरे ऊपर


आज इए वक्त ने क्यूँ दुखों का

पहाड़ लाद दिया है मेरे सर पर

हां मैं मजदूर हूं

हां मैं आज पैदल चलने के लिए मजबूर हूं


खाने केलिए ना है खाना ना है

रहने के लिए सहारा अब मेरे पास

अगर ऐसा ही रहा तो मैं थोड़ी ही दिन

मैं जिंदा है बन जाऊंगा मैं लाश


मेरे गांव मैं मेरे छोटे से घर मैं मेरा

एक छोटा सा परिवार बसता है

जिस घर का इकलौता कमाने वाले मैं ही हूं

जिसकी आंखें रोटी केलिए मेरी राह देखता है


आज जीने मरने क

ी इस दौड़ मैं

खुद को कितना अकेला पाता हूं

हां मैं मजदूर हूं

हां मैं आज पैदल चलने केलिए मजबूर हूं


आज कमाने का कोई रास्ता बचा नहीं है मेरे पास

अब अपने गांव लौटने के सिवाय 

और कोई रास्ता नहीं है मेरे पास

अपने गांव लौटने के लिए मेरे दो पैर के सिवाय

और कोई साधन नहीं है मेरे पास


अब चाहें जो कुछ हो जब तक जिंदा हूं

तब तक करता रहूंगा

मेरे परिवार के भूख मिटाने का प्रयास

बड़े बड़े योजना है हमारे लिए

पर मेरे काम है एक ना आया


मेरे ऊपर और मेरे परिवार के ऊपर

हमेशा रहा भूखमरी का साया

जिस रोटी के खातिर हमारा गांव छूट गया

आज वो भी हमसे रूठ गया


आज जीने मरने की इस दौड़ मैं

खुद को कितना अकेला पाता हूं

हां मैं मजदूर हूं

हां मैं आज पैदल चलने केलिए मजबूर हूं।


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