आम आदमी
आम आदमी


कुछ लोग बड़े बड़े मकानों में रहते है
अच्छा अच्छा खाना खाकर
मुलायम बिस्तर में सोते है
कभी आकर तो देखो साहब
तपती धूप में काम करना कैसा होता है
जब उनका हक़ का पैसा उन्हें नहीं मिलता है
तो क्या बीतता है
सारे घर का बोझ सर पे लिए हुए
एक आम आदमी कह रहा है आपसे
बड़े बड़े मकानों में रहने वाले बड़े बड़े लोग
ज़रा सुनो इस आवाज़ को गौर से
हर दिन दो वक्त का खाना जुगाड़ करने के लिए
करता रहता है वो संघर्ष
अपने घरवालों को अपने बच्चों को वो
अच्छी ज़िन्दगी नहीं दे पाया यहीं रहता
उसको हमेशा अफ़सोस
वो बड़े बड़े महलों में रहने का सपना नहीं देखता है
अपने परिवार को अच्छी ज़िन्दगी कैसे दे सकता है
यहीं वो हमेशा सोचता रहता है
कभी आकर तो देखो साहब तपती धूप में
काम करना कैसा होता है
जब उनका हक़ का पैसा उन्हें नहीं मिलता है
तो क्या बीतता है