Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Nivish kumar Singh

Tragedy

4  

Nivish kumar Singh

Tragedy

दहेज

दहेज

2 mins
352



पूर्व मे जब होता था विवाह, 

बेटी के पिता खुशी से, 

जमाई को देते उपहार। 

उपहार पाते पाते, मानव का बढ़ा लालच, 

उपहार जो होता सदा गुप्त। 

धारण किया दहेज का बुरा रूप। 

अब खुशी न ये गुप्त रहा। 

लालची अपने झोली भड़ने को

 बेटी के पिता से, 

माँगो की शुरुआत किया। 


जबतक शिक्षा का अकाल था, 

चलो ये पाप माफ रहा। 

आज पढ़ लिख कर भी

खुद को क्यों बेचते। 

एक मजबूर पिता को

खून चूस क्यों लूटते। 


हे जन्म दाता माता

जन्म न देना लालची कुपुत्र। 

जो होकर इंसान, पढ़ कर किताब

दहेज के नाम से, करे खुला अत्याचार। 

 जीवन भर रहना जिसके संग। 

पुरा समान लाए

उसके पिता से भीख माँग। 


पिता यदि हो तुम सिर्फ एक बेटे का, 

नही नसीब तुम्हे होना, पिता बेटी का। 

उपहार को सौभाग्य मान

घर अपनी बेटी लाओ। 

धन के गठरी नही, 

अपने घर साक्षात लक्ष्मी लाओ। 


आज के पुत्र

कल के पिता बन सोचो। 

चलता रहा जो ये विधान

खुशियाँ न मिलेगी कल किसी के द्वार। 

राजी नही यदि माता-पिता

बिन दहेज तुम्हारे शादी को। 

उनके इस बुरी इच्छा को तोड़ दो, 

आने वाले अच्छे कल के लिए

आप उन्हे छोड़ दो। 

    


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy