“ज्ञान कि जीत”
“ज्ञान कि जीत”
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अधर्म का पाप जब पोखर खोदा
धर्म भक्त मन बटोर कर सोचा
जंग जितने कि ज़िद लिए
साधु निकल पड़ा कमंडल लिए
राहों में आए काँटे डाल
देते गए गुलाबों का सम्मान,
भटक भटक साधु पहुँच पड़ा
गुरु चरणों में माथा टेक पड़ा
मन के भाव जब शून्य हुए
गुरु ज्ञान से पूर्ण हुए
जब भी धर्म पर जुल्म हुए
अधर्म का नाश ज्ञान से ही हुए।।