पकड़े चलो रेल कि पटरी
पकड़े चलो रेल कि पटरी
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बाँध कर मज़बूत गठरी
पकड़े चलो रेल कि पटरी
करने से झार फुक मंतर
जीवन में होगा न कोई अंतर
पथ पर चलना होगा निरंतर
जीवन में लाने को अंतर।।
मन है बहरूपिया बंदर
जीवन सबका है समुंदर
बन के धार का मल्हार
चलो करें समुंदर पार।।
बाँध कर अपनी मज़बूत गठरी
पकड़े चलो रेल कि पटरी।।
“जय हों”