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Mahak Sharma

Tragedy Inspirational

4.8  

Mahak Sharma

Tragedy Inspirational

बरसों पुरानी बात थी

बरसों पुरानी बात थी

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बरसों पुरानी बात थी

वो सर्द-सी एक रात थी


तारों की जगह उस रात में

बस कोहरे की बरसात थी


एक अनजानी-सी राह में

जाने किस मोड़ से


वो जा रही थी बेखुद-सी

हर बंधन तोड़ के


आंखों में उसके आंसू और

होंठो पर मुस्कान थी


ज़िंदगी के इस खेल से

वो खुद भी हैरान थी


चाहत उसकी कोई छीन न ले

बस इतनी दुआ तो मांगी थी


लेकिन खुदा ने भी हर कदम पर

उसका इम्तेहान लेने की ठानी थी


वज़ूद की इस लड़ाई में 

जीत भी कहां आसान थी


अपने रूठे, रिश्ते टूटे

अब दुनिया उसकी वीरान थी


तन्हाई के इस लम्हें में

बस खुद का ही एक साया था


नमंज़िल पा कर भी खुद को

उसने हर मंज़र अपनाया था


दिल में यही कशमकश लिए

हर गम को सीने में सीए

वो बेहोश-सी चले जा रही थी


आगोश में उस ठंडी हवा के

बस वो खुद से ही लड़े जा रही थी


अपनी हकीकत से उसे

अब दुनिया को मिलवाना था


वो कमज़ोर नहीं, वो तन्हा नहीं

ये सबको बतलाना था


जाकर उस शेल्टर के नीचे पड़े

बेंच पर वो बैठ गई


एक पल के लिए वो

इस अकेलेपन से सहम गई


फिर उसके हाथों ने वो 

पुरानी डायरी बैग से निकाली


जो एक अरसे से उसने

खुद से ज्यादा थी सम्भाली


न जाने कितनी कल्पनाएं 

उस नन्हीं-सी चीज़ में कैद थी


उसे वो यूं सीने से लगा बैठी

जैसे वो उसकी इकलौती उम्मीद थी


साथ गर अपने नहीं तो क्या

ये यादें ये किस्से तो थे


एक दिन खुद को ढूंढ लेगी वो

ये वायदे उसके हिस्से तो थे


सर्दी का ये घना कोहरा अब

कुछ कम ही शोर मचा रहा था


उसके दिल मे ख्वाबों का एक तूफ़ां

उसकी सोई उम्मीदों को जगा रहा था


अब मुड़कर पीछे देखना

मुश्किल सा लग रहा था


करेगी हर ख्वाब पूरा वो अपना

अब बस यही सच लग रहा था


उस सर्द सी रात में 

लेकर वो सपने साथ


चल पड़ी उस राह पर

अकेली वो बेबाक


अब भी कोहरा बाकी था

उस मद्धम सुबह के संग


लेकिन इस काली रात ने भर दिए 

उसकी ज़िंदगी में कुछ नए रंग


अब वो अपने बिल्कुल पास थी

अब वो खुद ही खुद के साथ थी


ये बरसों पुरानी बात थी

वो सर्द-सी एक रात थी।


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