गुलमोहर
गुलमोहर
खिलखिलाती वो हंसी चुप होती देखी हैं,
मैने बाग से चोरी होती गुलमोहर देखी हैं,
अंधियारे की बेर थी,
उससे रूठी सबेर थी,
भीड़ में कुछ खोया सा लगा,
उसे उसका हाथ खुद से छूटता दिखा,
उसकी चुप्पी गहरी थी,
सबके सवालों से वो डरी सहमी सी थी,
एक मानसिक तनाव की बात ही थी,
और वो टाल रही थी,
आहिस्ता आहिस्ता सम्पूर्ण बाग खाली हो जाएगा,
जो मुरझाया गुलमोहर वो फिर ना खिल पाएगा,
अपने विचारों से घिरा,
वो गुलमोहर मुरझा ही गया,
कैद में वो अपनी ही सोच के था,
इस ज़माने से खुद को बेहद दूर कर लिया था,
एक घुटन उसको हर पहर झंझोर देती,
अब अंधेरी कोठरी ही उसे सुकून देती,
किसी ने गुलमोहर से ना पूछा,
क्यूं उसका मन था सूना,
ना किसी ने जाना की कितने फंदों ने था उसको जकड़ा,
हाथों में निशान थे,
कुछ धुंधले से ख्वाब थे,
शरीर भी टूट चुका था,
आत्मा का अंतिम संस्कार होना बाकी था।।