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Mahak Sharma

Abstract

4.5  

Mahak Sharma

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"आईना"

"आईना"

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तुम ख्वाबों का एक पुलिंदा हो, नाज़ुक और नादान

मैं एक सच का आईना हूँ, बेख़ौफ़ और बेबाक


तुम टूटने से डरते हो, जो बदले ये हालात

मैं टूट कर भी टुकडों में, करूं सच को ही आबाद


तुम आंखों में ही रहना चाहो, बन कर कोमल जज़्बात

मैं माटी में भी मिलना जानूं, खाकर चोट हज़ार


तुम जो टूटे तो किसी के, मन में भरम ही रह जाएंगे

मेरे टुकड़े होकर भी सब को, सच का राह ही दिखलाएंगे


तुम लोगों की सोच में, एक ख्याल बन कर रह जाओगे

मैं तो हूं मन का वो साथी, जिसे हर घड़ी संग पाओगे


रातों के संग प्रीत तुम्हारी, नीदों के संग यारी

मेरी लग्न हक़ीक़त से है, चाहे दुनिया ठुकराए सारी


तुम्हें अपने वजूद को, एक दिन मिटाना होगा

लेकिन मैं वो धर्म हूं, जिसे सबको निभाना होगा।


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