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Rajeshwar Mandal

Tragedy

4  

Rajeshwar Mandal

Tragedy

मैं कौन हूं

मैं कौन हूं

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मैं कौन हूं

मैं वो हूं जिसका

कोई मान नहीं

अर्थ नहीं

सम्मान नहीं

    

     अंश मात्र की रुखता से विचलित

     अंश मात्र की नम्रता पर समर्पित

     अंश  मात्र की स्नेह का प्यासा

     अंश मात्र में मेरी सम्पूर्ण परिभाषा

    

कभी रंग रुप पर

कभी गुण धर्म पर

और कुछ बहाने न मिले तो

कह अपसकुन नर


     बेवजह या बावजह 

     हर एक बात पर लताड़ा गया

     तोड़ा गया मरोड़ा गया

     कृत कृत पर

     खामखां झकझोरा गया


माना कि मेरी गलती का कारण

कुछ कच्ची उम्र की नादानी होगी 

या किशोरवय का अल्हड़पन

युवावस्था की मजबूरियां होगी

जो मैं चला हर बार एक ही डगर


      फिर हर रास्ते हर गलियां

      मैंने पाया सिर्फ कुत्ते और सियार

      जो स्वर्ण कंगन दिखा दिखा

      जज्बातों से किया बारम्बार शिकार


पर समय के साथ

मिली जो सीख

कि जज्बातों में आकर

फिर से मैं

खुशियों से

चहक जाऊं

बहक जाऊं

लहक जाऊं

बारम्बार

अब ऐसी कोई बात नहीं


      कागजी फूलों से आहत

      हृदय किया जो छलनी छलनी

      अब उससे क्या आश करूं

      तुम्हीं बताओ अब

      किस किस पर विश्वास करुं


 इस अंश मात्र के चक्कर में

 जब जब मैं छला गया

 तब तब मन में एक प्रश्न उठी

 मैं हूं कौन : मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ


 

       पंचतत्व निर्मित इस काया में

       देह दृष्टि में सिर्फ माया हूं

       भौतिक दृष्टि में नश्वर हूं

       किसी के लिए ईश्वर

       किसी के लिए राजेश्वर हूं

       जिसके हिस्से जैसा काम आया

       उनके नजरों में सिर्फ वैसा दर हूं।

             


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