गजल जख्मी दिल
गजल जख्मी दिल
दिल ये दिल था मेरा कोई खिलौना तो ना था
के खेला और खेल के तुमने इसे तोड़ दिया।
हमराज़ हमदर्द हमसफर मेरे इंतहा ए मोहब्बत में
हुई क्या खता ,जो तुमने यू रुख मोड़ लिया।
गुस्ताख दिल जब ये जख्मी हुआ,
तब ये आया ख्याल कि हमने क्या ना किया।
तकदीर मे मोहब्बत भी होती गर कहीं,
तो जुदा न होते हम यूँ मोहब्बत में तेरी।

