हम...
हम...
बस एक कदम की दूरी है,
और एक लम्हे का फ़ासला।
रुके हुए हैं छोर पे
कौन बनेगा हौसला?
बढ़ जाए जो मेरे कदम तो
जीत जाऊं मैं ये दुनिया।
और बढ़े जो उनका हाथ तो,
थम जाए वक़्त का काफिला।
तए करनी हे ये दुरी हमें
पर जमाने की लगी हे बेड़ियां।
क्यों बंधे हे दिखावे के बंधनों में
आज भी,
जब कोई नहीं है दरमियान?
आओ,
आज इस लम्हे में,
एक कदम तुम बढ़ाओ,
साथ तुम्हारा दे मेरी खामोशियां।
एक हो जाएँ और तोड़े हम
ये दुनिया की बँधी बेड़ियां।
मैं और तुम से हम बने
और हम से हो ये सारी दुनिया...

