आँगन
आँगन
ये दरवाजा खुलता है
एक जन्नत की ओर,
चांदनी रहती है जहाँ
वो है इस दुनिया का छोर।
खुशियाँ, दुआएँ रहती है यहाँ
मुश्किलें भी आती है,
और दिखा जाती है
एक नया दौर।
सहा है इस आँगन ने
हर मौसम का ज़ोर,
पतझड़ हो बारीश हो
या हो बसंत की भोर।
बिता है बचपन यहाँ
पकड़ के मस्ती की डोर,
चाय की चुस्की भी है
और है जाम की मौज यहाँ।
दोस्तों संग खेली होली यहाँ
साथी संग जताया प्यार,
कभी एकेलेपन मे भी
बिताया लम्हा यहाँ।
वो दरवाजा खुलता है
एक जन्नत की ओर,
चांदनी रहती है जहाँ
वो है इस दुनिया का छोर।
