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Srushti Valia

Others

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Srushti Valia

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ख़्वाब

ख़्वाब

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नामुमकिन सा एक ख्वाब है देखा,

ख़ुद को एक मुकाम पे देखा।

खिड़की थी खुली और

सामने स्वर्ग सा एक नज़ारा देखा।

बहती हुई नदी देखी,

उपर खुला आसमाँ देखा। ।

इस नज़ारें को भर आँखों में

खुद को मैंने सुकून में देखा।

पंछीयों का चहकना,

हवाँ के झोकों से,

पेड़ो का बतियाँना सुना।

हाथों में थी चाय की प्याली,

उससे उठता धुआँ देखा।

खोये थे जो अपने सब

उन्हें लौटते देखा।

एक एक कर सारी

कड़ियों को जुड़ते देखा।

बस,

अब जी भर के जीना है,

इस ख़्वाब को,

क्योंकि बहुत कुछ है मैंने,

टूटते देखा।



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