याद आया!
याद आया!
आज फिर वो मौका याद आया,
खोया था जिसे वो सपना याद आया।
उड़ान तो भरी थी ऊंची मगर,
ज़िम्मेदारी की डोरियों ने
उड़ने न दिया।
ख्वाब थे की
आसमान को करु फतेह
ऊपर वहाँ, सितारों में,
बनाऊ अपनी एक जगह।
पर ज़मीन की जड़ों ने
यूँ खिंचा धागा,
के रह गए सारे
ख्वाब मेरे दबे।
आज फिर वो मौका याद आया
खोया था जिसे वो सपना याद आया।
