वह रात थी बरसात की..
वह रात थी बरसात की..
वह रात थी बरसात की
उन दोनों के मुलाकात की ।
सुनसान रास्ता था ।
दोनो में ना कोई वास्ता था।
अचानक बिजली कड़की थी,
चिंगारी सी भड़की थी ।
वह सहमी थी,
एक जगह चुपचाप ठहर गई थी ।
आगे जाने वाले ने पीछे पलट कर देखा था ,
अपने मन में कुछ सोचा था ।
फिर उसकी तरफ कदम बढ़ाया था ।
पास आकर बोला था,
तुमको कहां जाना है ,
कुछ समझ नहीं पा रही थी,
यह सच में कोई इंसान है,
या इंसान के रूप में बहुरूपिया ,
फिर उसने , हिम्मत से काम लिया ।
बस स्टैंड तक जाना है,
उसने कहा मुझे भी जाना है ।
मैं आगे हूं तुम पीछे चलो,
बिल्कुल नहीं तुम डरो ।
एक अपनापन सा पाया था,
उसने निडरता से कदम बढ़ाया था।
बस स्टैंड का प्रकाश देखकर,
उसके चेहरे पर मुस्कान आई थी ,
देखकर उस अजनबी को,
हल्के से मुस्कुराई थी।
धन्यवाद के लिए होंठ खुले थे,
दोनो के नयन मिले थे।
उसके बाद फिर वह दोनों,
कभी नहीं मिले थे ।
यह अधूरी प्रेम की दास्तान,
उन दोनों के मुलाकात की,
वह रात थी बरसात की।।

