हर शख्स अकेला है
हर शख्स अकेला है
उस प्रश्न का क्या उत्तर दूं,
जो उत्तर अपने आप में प्रश्न है।
हर शख्स यहां अपने आप में डूबा है,
हर शख्स दिशाहीन कश्ती में सवार है,
दोष दूं तो किसे दूं
इस प्रश्न का उत्तर क्या दूं।
बहुत खोखले हैं रिश्ते यहां,
बहुत बनावटी तस्वीरें हैं।
उन रिश्तो को क्या नाम दूं,
जिनकी टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें हैं।
फूल तो है गुलाब का,
मगर खुशबू नहीं है।
कहने को तो बहुत अपने हैं,
पर अपनेपन की बू नहीं है।
भीड़ है चारों तरफ,
मगर हर शख्स अकेला है,
अगर कुछ है किसी के पास,
तो यादों का मेला है।
छोड़कर चल देते हैं यूं,
जैसे कभी मिले ही नहीं थे,
हमने भी कब रोका उन्हें ,
जैसे हमारे दिल मिले ही नहीं थे।
रात चांदनी से भरी है,
चांद फिर भी अकेला है,
हंसते हुए चेहरे पर मत जाओ
दिल मे दर्द का रेला है।
बुझा कोयला भी गर्म होता है,
कभी छू कर देखो,
खामोश दिल में भी सपने होते हैं,
कभी उसे कुरेद कर देखो।