हे योगेश्वर अब तो आओ
हे योगेश्वर अब तो आओ
अभिमन्यु सा खड़ा दोराहे पर वो,
हाथों में पुलिंदा किताबों का
माथे पर लिए लकीरें वो,
सागर की गहराइयों में डूबता उतराता
सैकड़ों चित्र बनाता वो,
डंक मार रहे प्रश्नों के कीड़े
शून्य में उत्तर तलाशता वो,
पिता के धूमिल चेहरे का अक्स
जननी की आंखों की आशा
राखी रही पुकार उसे
छोटे के मन की अभिलाषा
चहूं दृष्टि से घिरा
बेचारगी का भाव लिए वो,
क्षण भर में गूंज उठे कहकहे
अपनों के व्यंग बाण सहे
चक्रव्यूह में प्रवेश कर जा
अंतर्नाद की गूंज लिये
विजयी बन सज्जित कर सबको
अथवा मृत्यु की शैया संवार ले वो,
आक्रोश की ज्वाला में तपता
दंड का भागी बनता वो,
हाय विधाता यह तेरी रचना
अभिमन्यु सा प्रवेश कर गया
निकल न पाया युवा वो,
कौरव से सब भ्रष्टाचारी
जिनके छल में फंसता वो,
"हे योगेश्वर अब तो आओ"
तुम्हें गुहारता अभिमन्यु सा वोll
