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usha shukla

Abstract

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usha shukla

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वीरानगी

वीरानगी

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न मिलकर भी मिल जाते हैं,

खामोशी में सब कह जाते हैं,

बहुत कशिश है उसकी खामोशी में,

दिल चीरकर चले जाते हैं।

चाहा नहीं कभी मिलना,

चाह कर भी मिलने की,

 चाहत नहीं होती,

अब तो हर चाहत खतम हुई,

वीरानगी की दास्तान कुछ 

ऐसे पढ़ी गयी ।

हजार कोशिशें की,

उसे भुलाने की,

भूल कर भी,

 वो भुलाई न गयी,

याद आने और भुला देने की,

कशमकश में, 

अब तो हर चाहत खतम हुई,

वीरानगी की दास्तान कुछ 

ऐसे पढ़ी गयी।



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