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Reet Chouhan

Abstract

4.7  

Reet Chouhan

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कैसे भूल जाऊं??

कैसे भूल जाऊं??

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मेरे मर्यादा के आंचल को तार-तार कर दिया ,

मेरे रूह को जिस्म से काट कर फेंक दिया,

मेरे दिल में बैठे उस खौफ को कैसे इन्तहा करूं ,

झगड़े हुए ख्यालों को कैसे खुद से दूर करो,

बताओ कैसे भूलकर आगे बढ़ो,


चटमरी छीकें अंदर ही घुट गई,

कटी हुई कलाई तुमसे छुप गई,

वो दर्द भरे प्याले हंसकर पी गई ,

"तू कितनी बहादुर है" खुद से बस कहती रही ,

उन खयालों को कैसे दूर करूं ,

बताओ कैसे भूलकर आगे बढ़ो,


नन्ही सी जान थी क्यों तड़पाया मुझको,

अगर आज आंसू बहाऊं तो भूल जाओ ना तुम उसको,

 समय बीत गया उस मत याद करो,

 पर इन खयालों को खुद से कैसे दूर करूं,

 बताओ कैसे भूलकर आगे बढ़ो,


क्यों अकेले सड़क पर चलने से मन घबराता है,

क्यों अपने दिल की बात करने में हौसला कतराता है ,

दरिंदगी इनकी परवान चढ़ रही है,

समाज वालों ने सारी बदनामी औरत के तकदीर में क्यों लिखी है,

कश्मा-कश्मी के तूफान को अंदर दबूज के रखा है,

तो बताओ उन खयालों को खुद से कैसे दूर करूं, 

कैसे भूलकर आगे बढ़ो,


बस एक ही दुआ है उस खुदा से ,

हवस के पुजारियों की हवस की दरगाह ना बन जाऊं,

कहीं फिर से बेटी बनकर लौट ना आओ...


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