मैं पत्थर की मूरत हूँ
मैं पत्थर की मूरत हूँ
मैं पत्थर की मूरत हूँ!
फिर क्यों मुझे बुलवाते हो ?
तुमने क्या कहा, मैंने क्या सुना ?,
हम तो अनिभिज्ञ हैं इससे।
न तो पत्थर बोले, न ही बोले मूरत,
फिर पत्थर मूरत क्या बोले ?
तुम तो अनजान हो इससे,
सच्चाई का पता नहीं।
तूने इसे तराशा था,
तूने इसे बनाया, तूने इसे सजाया।
मूरत हूँ-मूरत हूँ! मैं तो,
मैं तो जिसकी छाया हूँ।
महसूस करो, स्पर्श करो,
तब मैं दृष्टिगत होता हूँ।
तुम जाओ पर मैं न जाऊँ,
मैं ही पिछले की याद दिलाऊँ।
आधा तुम हो, आधा मैं हूँ,
मैं हूँ आधा, मैं हूँ आधा।
अनजान सही, अनजान सही,
मैं पत्थर की मूरत हूँ!
चले चलो, चले चलो,
बढ़ सकते हो बढ़ते चलो।
दिखला दूँगा सबको,
बीते हुए मैं कल को।
मैं बोल नहीं सकता,
शायद तुम देख समझ पाओ।
मैं पत्थर की मूरत हूँ!
तुम इसको और बढ़ाओ।
मैं पत्थर हूँ - मैं हूँ पत्थर,
तुम मुझको और सजाओ।
सजाओगे तो खुशी होगी मुझको,
और आगे चलकर गीत तुम्हारे गाऊँ।
मैं पत्थर की मूरत हूँ!
कुछ पूजे व्यर्थ ही मुझको,
मुझमें आखिर ऐसा है क्या ?
तृप्त करे वो-तृप्त करे वो,
और दिखाते मुझे दया।
मैं पत्थर की मूरत हूँ !
मैं पत्थर, पत्थर मैं हूँ!
मैं बद्सूरत काला-भूरा हूँ।
दिया रूप है जिसने इसको,
मैं हीरा या वह हीरा है।
मैं पत्थर की मूरत हूँ!
कहाँ है पत्थर, कहाँ है पत्थर!
गया कहाँ वो, कहाँ गया वो ?
जिसके बिना मैं अधूरा हूँ।
लाओ पत्थर-पत्थर लाओ,
थोड़ी इसमें जिज्ञासा दिखलाओ,
मैं पत्थर की मूरत हूँ!
दिखलाते हो तो दिखलाऊँगा,
तुम न सही मैं बतलाऊँगा।
टूटूँ मैं ही तो दर्द भी मुझको,
तू क्यों फिर कतराता है ?
तू तराश तराशता जा,
मैं तो तेरे साथ हूँ।
मैं पत्थर की मूरत हूँ!
नाम मिलेगा-नाम मिलेगा,
नहीं, नहीं! वरदान मिलेगा।
चलते-चलते आते जाते इससे,
कुछ न कुछ तो पायेंगे।
शायद ही वो मेरी या कुछ तेरी,
कुछ न कुछ तो गायेंगे।
मैं पत्थर की मूरत हूँ!
सही धूप थी अब तक मैंने,
मार सही मैंने झोकों की।
पर हिला नहीं मैं हिला नहीं हिला,
पर थोड़ा धूलित हो चुका तो हूँ।
मैं पत्थर की मूरत हूँ!
दिया जन्म था जैसा जिसने,
कर्म किया था उसने ऐसा।
मुझको खुशी है तो कुछ रुष्ठा भी,
आखिर जख्म सहे मैंने तो भी।
चली यहाँ से गोली तोपें,
मैं पत्थर की मूरत हूँ!
बयान किया जा सकता नहीं कुछ,
शायद रह जाए मेरा अंश कुछ बाकी।
उम्मीद लगाये उम्मीद लगाई है मैंने,
क्यों न मेरा कुछ अंश सुरक्षित कर पाओ ?
मैं पत्थर की मूरत हूँ!
तुमने बनायीं हैं प्रतिमाएँ जिनकी जैसी,
झलक दिखाई देती है कुछ उनकी।
मैं पत्थर की मूरत हूँ!
तुमने हमको माना है ऐसा,
तुम क्यों फ़ूल ऐसे बरसाओ ?
मैं पत्थर की मूरत हूँ!
मैं झलक विगत की दिखलाऊँ।