कली नोंची गयी
कली नोंची गयी
क्यों न मंज़र थमा,
लो फ़िर आबरू लूटी गई।
हर जगह हर दफ़ा,
वो दबोची गयी।
वो तड़प तड़प के मरी,
अक़्सर ख़ूब नोंची गयी।
फ़ूल मुर्झा गया,
फ़ूल मुर्झा गया।
हर दफ़ा हर जगह,
वो तो बिखरा गया।
इंसान भूलकर,
मुस्कुराता गया,
और भुलाता गया।
मग़र उसकी
माँ रोती रही,
तड़पती रही,
बिलखती रही।
तेरा क्या गया,
तुझे क्या पता।
एक बेटी गयी,
एक बहना गयी,
घर का गहन गयी,
हर दफ़ा हर जगह,
एक कली नोंची गयी।
