ओ !गौरैया-ओ !गौरैया
ओ !गौरैया-ओ !गौरैया


ओ ! गौरैया-ओ ! गौरैया,
कत्थई मेरी फुदक चिरैया।
कहाँ गयीं तुम कहाँ गयीं ?
आओ न मेरी प्यारी चिरैया।
समय बहुत व्यतीत हुआ,
जब घर आँगन पर आती थीं।
दाना चुंगकर औ पानी पी,
तुम तन को तृप्त कराती थी।
चीं-चीं, फ़ुदक-फ़ुदक कर
आँखों को हरियाती थी।
हम मानव ने वास है छीना,
> घरों में भी न जगह मिली।
कहाँ-कहाँ तू भटकी होगी ?
मिला न होगा तुझे निलय।
नील गगन भी नापा होगा,
सात समन्दर छाना होगा।
जहाँ गयीं तुम जहाँ गयीं,
न भूख़ मिटी न प्यास मिटी।
साँस रही तब तक बेचारी,
निराश्रय यहाँ-वहाँ भटकी होगी।
सिकोड़े पंख-सी बैठ गयी अब,
अब नहीं दिखुंगी मैं लुप्त हुईं।।