मैं नन्हीं सी चिड़िया तेरी
मैं नन्हीं सी चिड़िया तेरी
माँ मुझको विश्व घुमा दो,
मैं नन्हीं सी चिड़िया तेरी।
अण्डे से कर मुझे है तारा,
जग में तुम लेकर जो आई।
मैं नन्हीं सी चिड़िया तेरी,
बेचैन बड़ी धरा भ्रमण को।
उत्साह बड़ी सम्पूर्ण हृदय में,
मैं नन्हीं सी चिड़िया तेरी।
माँ ने सुनकर कहा रे पगली,
तू है प्यारी चिड़िया मेरी।
नाज़ुक छोटी काया प्रिय,
पंख तेरे अपरिपक्व हैं बच्ची।
तू नन्हीं सी चिड़िया मेरी,
समय लगेगा बढ़ने में तुमको।
मैं घर पर तुमको सिख लाऊँगी,
तू क्या जाने भेद इस जग का।
मैं हर कण का ज्ञान दिलाऊंगी,
तू नन्हीं सी चिड़िया मेरी।
तुम हो बड़ी ही भोली-भाली,
शत्रु बड़े विचित्र धरा पर ।
रत रहते धुन की ख़ेमा में,
पाने को अभिलाषी काया।
तू नन्हीं सी चिड़िया रानी,
भटकायेंगे तुमको किसी बहाने।
तरु की शाखाओं में छिप कर,
पाने को उत्कण्ठित हर पल।
कोई मौन-सा कमान तन कर,
भेदेगा वह कोमल कलेवर।
तू नन्हीं सी चिड़िया मेरी,
काले-काले बादल अम्बर में।
फैलाते हैं दुःख हैं प्रतिक्षण,
बिजली फ़िर गड़-गड़ करके।
मन बहलाते हैं डरा-डरा कर,
तू नन्हीं सी चिड़िया मेरी।
तुम स्थिर हो जाओगी प्रिय,
राह भटक बेचैन गगन में।
तेज़ पवन से टकरा-टकरा के,
मूर्च्छित होकर गिर जाओगी।
तू नन्हीं सी चिड़िया मेरी,
बरखा की पीड़ा अति भारी।
सम्पूर्ण तन भिगो भिगोकर,
पंख तेरे पानी से मिलकर।
कहाँ पंख री कहाँ री काया,
तू नन्हीं सी चिड़िया मेरी।
गर्मी अति भारी हो जाती,
व्याकुल पूरी धरा हो जाती।
बेचैन घूमते इधर-उधर सब,
तू नन्हीं सी चिड़िया मेरी।
शीत ऋतु में ठिठुर-ठिठुर कर,
बदन ऐंठ जाते है सभी के।
कहाँ दिन और कहाँ रात री,
सोच-सोच ही हैं घबराते।
तू नन्हीं सी चिड़िया मेरी,
मानव अब दानव बनकर।
शिकार में रहता है हरपल,
दया धर्म अब कहाँ बची री।
जो मिल बैठे उसे नोचते,
काया को आँखों रखकर।
फड़फड़ाते दबोचने को कर,
बात मान लो तुम मेरी प्रिय।
तू नन्हीं सी चिड़िया मेरी,
मैं नन्हीं सी चिड़िया तेरी।।