शायरी संग्रह
शायरी संग्रह
1 min
364
क्या ग़म बिछुड़ने का उनसे
जिनसे कभी दिल लगा नहीं
और जिनसे लगा दिल मेरा
उन्हें मैं कभी भाया नहीं
द्वंद में पूरी जिंदगानी बीती
लम्हें लम्हें पाला बदलने में
हासिल मुक्कमल कुछ न हुआ
सिवाय तमगा बदनामी की
रुठे तो रुठे राज किनसे
अब मनाने का रिवाज रहा नहीं
और जिसने भी यह रिवाज निभाया
उनका भी दामन साफ मिला नहीं
अब तो हर एक चेहरे
बीजगणित सी लगती है
सीधी बातों से सुलझता नहीं
जो एक आध सुलझे भी मिले
बहुत दिनों तक उनसे निभा नहीं ।
कभी जिनके हर एक झूठ पर
बेमन हां में हां मिलाया करता था
अब हर सच भी उनका चुभता है
दिलो दिमाग अब सही है मेरा
या ये व क्त वक्त की बात है।