नव संवतसर
नव संवतसर
नवसंवत्सर ही नव वर्ष है।
मन में अब अति हर्ष है।
गेंहू पर आई अब बाली।
नभ में छाई अब लाली।
समय आया बड़ा उत्कर्ष है।
नवसंवत्सर ही नव वर्ष है।
नवजीवन की कोपल फूटी।
सफलता की गड़ जाये खूटी।
प्रकृति का अनुपम स्पर्श है।
नवसंवत्सर ही नव वर्ष है।
शस्य श्यामला धरती माता।
सूरज भी जय गान सुनाता।
यह सनातनी ही हर्ष है।
नवसंवत्सर ही नव वर्ष है।
नव वर्ष की बस यही रीती ।
रखना आपस में सब प्रीती ।
हिन्दू मन का यह कर्ष है।
नवसंवत्सर ही नव वर्ष है।।
हर ओर सृष्टि गा रही ओम।
सुनलो ध्वनि तुम भी 'सुओम'
नवसंवत्सर का प्रकर्ष है।
नवसंवत्सर ही नव वर्ष है।।