कूद रहीं अंधकूप में, पापा की परियां असहाय से देखते, मां -बाप खड़े हुए हैं। कूद रहीं अंधकूप में, पापा की परियां असहाय से देखते, मां -बाप खड़े हुए हैं।
खारी-खारी बूंदें भी अमूल्य लगने लगती है ! खारी-खारी बूंदें भी अमूल्य लगने लगती है !
धान एक गर्जना की बाट में बंजर हो गए मैदान लुप्त हो रही नित सरिता ये कैसी है प्रगति धान एक गर्जना की बाट में बंजर हो गए मैदान लुप्त हो रही नित सरिता ये कैसी...
गोरैया प्यारी मनोहर अनुपम मतवाली है, चीं चीं की नव उमंग से फैली उजियारी है। गोरैया प्यारी मनोहर अनुपम मतवाली है, चीं चीं की नव उमंग से फैली उजियारी है।
तुम्हारे दूर जाते ही खारी-खारी, बूंदें भी जैसे लुप्त हो जाती है, ठीक उस तरह; जैसे सूरज के अवसान पर, ... तुम्हारे दूर जाते ही खारी-खारी, बूंदें भी जैसे लुप्त हो जाती है, ठीक उस तरह; जैस...
पंख फैलाए हर दिन की तरह एक नयां गीत गाते वे चिड़ियां! पंख फैलाए हर दिन की तरह एक नयां गीत गाते वे चिड़ियां!