सूखे पत्ते को तो फिर भी मिल जाती है शुष्क हवाओं की लहरें, में तो एक बंज़र जमीन हूँ गर्मियों से त... सूखे पत्ते को तो फिर भी मिल जाती है शुष्क हवाओं की लहरें, में तो एक बंज़र जम...
तुम्हारे दूर जाते ही खारी-खारी, बूंदें भी जैसे लुप्त हो जाती है, ठीक उस तरह; जैसे सूरज के अवसान पर, ... तुम्हारे दूर जाते ही खारी-खारी, बूंदें भी जैसे लुप्त हो जाती है, ठीक उस तरह; जैस...
मन की धरा क्यों है आखिर, इतनी शुष्क तुम्हारी। मन की धरा क्यों है आखिर, इतनी शुष्क तुम्हारी।
ऐ सूरज तू नाज़ न करना, अपनी तेज़ प्रकाश पर। छुपना पड़ता है तुमको ग़र, बादल आए ज़िद पर।। ऐ सूरज तू नाज़ न करना, अपनी तेज़ प्रकाश पर। छुपना पड़ता है तुमको ग़र, बादल आए...
सुखी लकड़ी की तरह कहीं ख्वाब ना मेरे जल जाए सुखी लकड़ी की तरह कहीं ख्वाब ना मेरे जल जाए