STORYMIRROR

S Ram Verma

Romance

4  

S Ram Verma

Romance

खारी-खारी बूँदें !

खारी-खारी बूँदें !

1 min
285

तुम्हारे छूने भर से नदी बन 

तुम्हारे ही रगों में बहने को 

आतुर हो उठती हूँ;


बदले में कुछ खारी-खारी बूंदें  

मेरी शुष्क हथेलियों पर तुम  

रख देते हो; 


वो बूंदें मेरी इन हथेलिओं पर

चमकती हैं तब तक जब तक 

तुम मेरे साथ होते हो;


तुम्हारे दूर जाते ही खारी-खारी  

बूंदें भी जैसे लुप्त हो जाती है 

ठीक उस तरह;

 

जैसे सूरज के अवसान पर 

चारों ओर छायी मृगमरीचिका 

लुप्त हो जाती है;

 

तब मेरी आकंठ प्यास को 

तुम्हारी वो कुछ खारी-खारी 

बूंदें भी अमूल्य लगने लगती है!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance