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Sukanta Nayak

Others

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Sukanta Nayak

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कुछ पल थे हसीन

कुछ पल थे हसीन

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कुछ पल थे हसीन अब वो ना रहे, 

कुछ यादें थे अनमोल अब वो ना रहे। 


क्या आलम है क्या तकदीर है 

जो आ पहुँचे है इसे मकाम पर 

ना कोई कश्ती है ना कोई माझी, 

बस एक बिरानी राह है। 


सूखे पत्ते को तो फिर भी मिल जाती है शुष्क हवाओं की लहरें, 

में तो एक बंज़र जमीन हूँ गर्मियों से तपती रेत मैं।



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