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Sukanta Nayak

Classics

3.1  

Sukanta Nayak

Classics

बीज

बीज

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बूंद बूंद पानी से भरती है घड़ा

बूंद बूंद पानी से मिटता है प्यास

जल से ही जीवन है

जीवन की महत्व समझ लेना 

वर्ना जीवन से हो जाओगे निराश।


शुस्क हवाओं में पत्तों की तरह

गर्मियों में तड़पती ओस की तरह

बिन बूंदों की बारिश 

बंज़र ज़मीन की तरह

नासमर्थ हूँ मैं।


और कद भी छोटा...

जल बिन मछली की तरह।

हर कदम एक नया अनुभव

हर हार में जीत की खोज

मिट मिट कर खुद की खोज

आग में तपकर सोने की चमक

हर खोने में होने की मौज।


में एक बीज हूँ

मिट्टी में मिलना है,

टूट के बिखरनी है

यही तकदीर है

और ऐसे ही

अपनी पहचान बननी है।


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