बारिश की तरंगें
बारिश की तरंगें
गगन उपवन घनघोर बदरा
ये सबका मिलना एक है,
तन मन में जो जोश जगाए
ये सब का एक रेख है,
घुमड़-घुमड़ के झर-झर बरसे
ये बदरा बहुत गजब का है,
गगन से लेके धरती तक
इसका ही तो रेख है।।
सकुच नहीं थोड़ा भी इसमें
जब चाहे देह भीगा जाए,
तन मन में भी प्रीत जगाए
अंग-अंग महका जाए,
बहुत मन भाए ये झम-झम बरखा
जब बूँदों का शोर मचाए,
झूम उठे मन, घर उपवन में
मन तितली-सा इतराए।।