मैं बड़ा हो गया
मैं बड़ा हो गया
बचपन में एक ही गुरेज़ थी
अरे कब बड़ा होऊँगा ..
देखो न मैं बड़ा हो गया..
हाँ, अब मैं बड़ा हो गया हूँ;
बाँध कर ज़िम्मेदारियों के बस्ते,
बस हर सुबह घर से निकल पड़ता हूँ|
बेफ़िक्री तो मेरी अब भी,
उसी बचपन की गुल्लक में पड़ी है..
अब तो तमाम फ़िक्रें,
अपनी जेबों में लिए फिरता हूँ|
हाँ, अब मैं बड़ा हो गया हूँ;
समय की पोटली पुरानी वाली,
जाने कहाँ खो गयी..
कटते नहीं थे दिन यारों के बिना,
सबकी नज़रों से बचा के,
अब अपने इतवार रखता हूँ..
हाँ, अब मैं बड़ा हो गया हूँ!