नयी शुरुआत
नयी शुरुआत
कभी कभी ज़िन्दगी
मुझे मुझसे ज़्यादा कमजोर नज़र आती है.,
इंसान तो छोड़ो,
किसी किसी बात पर तो मेरी ईश्वर से भी ठन जाती है
बिना जलाये रख देती हूँ सामने
आरती का दीया
और बोल देती हूँ जाओ नहीं करनी तुम्हारी पूजा
तब जाके परमेश्वर के निष्ठुर मन में ये बात आती है
बंद अंधेरे मन के घर में
कहीं झरोंखे से एक आशा की किरण टिमटिमाती है.
कि निरंतर चलने वाले,
थकते हैं, रुकते नहीं
बिना हल ढूँढें,
समस्याओं के आगे झुकते नहीं..
वक्त की तासीर ही ऐसी है,
चलते रहने की
अच्छा बुरा,,
रीत हर तरह की आती है,
ज़िन्दगी हँसती है, गाती है
और पल में सिमट जाती है.
पर इंसान हैं हम उलझे रहते हैं,
ज़रा ज़रा सी झंझटी बातों में
सुलझाने से तो उलझी गुथ्थी भी सुलझ जाती है
इतनी सी बात हमें समझ कहाँ आती है।
चलो एक नयी शुरुआत कर
ज़िन्दगी को नये सिरे से सँवारते हैं।