STORYMIRROR

बोओगे जैसा

बोओगे जैसा

1 min
475


बोओगे जैसा कटेगा वही

क्यों न सिंचाई अमृत की हो,

बबूल भी आम 

बनें है कभी।

छुपा लेंगे दुनिया से 

करनी का किस्सा, 

परिणाम मगर क्या

छुपेगा कभी?


नाराजगी या शिकायत

करो लाख,

न हो नींव मुकम्मल

क्या घर भी फिर

टिकेगा कभी।

चले जाओगे गर

जहान से तो क्या

संग-संग कर्म फल

चलेगा यही;

बोओगे जैसा, कटेगा वही!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics