बोओगे जैसा
बोओगे जैसा
बोओगे जैसा कटेगा वही
क्यों न सिंचाई अमृत की हो,
बबूल भी आम
बनें है कभी।
छुपा लेंगे दुनिया से
करनी का किस्सा,
परिणाम मगर क्या
छुपेगा कभी?
नाराजगी या शिकायत
करो लाख,
न हो नींव मुकम्मल
क्या घर भी फिर
टिकेगा कभी।
चले जाओगे गर
जहान से तो क्या
संग-संग कर्म फल
चलेगा यही;
बोओगे जैसा, कटेगा वही!