फागुन
फागुन
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बसन्त आयो लायो फगुनवा
बयार भी बौराय रही।
तीखी-तीखी छुरियां जैसे
नस-नस हमरे चुभाए रही।
टेसुवन बगराये हैं लाली
कूके कोयलिया अमुआ डारी,
मतवारे गोरी के नैना
चाल चले वो मतवाली,
भर -भर बान नयन से मारे
राह न सूझे अब कोई ना री।
बसन्त भायो राग सुनायो
फगुआ राग पे मैं वारी।