Rashmi Lata Mishra

Others

4.0  

Rashmi Lata Mishra

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फागुन

फागुन

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बसन्त आयो लायो फगुनवा

बयार भी बौराय रही।

तीखी-तीखी छुरियां जैसे

नस-नस हमरे चुभाए रही।

टेसुवन बगराये हैं लाली

कूके कोयलिया अमुआ डारी,

मतवारे गोरी के नैना

चाल चले वो मतवाली,

भर -भर बान नयन से मारे

राह न सूझे अब कोई ना री।

बसन्त भायो राग सुनायो

फगुआ राग पे मैं वारी।


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