गजल
गजल

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मैं नदी हूँ मुझे आज़माना नहीं,
पर्वतों के सिवा है ठिकाना नहीं।
झूमती दूर से आ गई देख ले,
गाँव तेरे अभी देख जाना नहीं।
नागपति की जटा बीच में राजती,
स्वर्ग कभी जा सकूँ ये बहाना नहीं।
ढेर सा प्यार तो आप ही ने दिया,
प्रेम देखो अभी ये भुलाना नहीं।
मैं सदा चाहती आपको जान से
आप भी आज से अब सताना नहीं।
की अभी हाँ यही आरजू देख लो
नजर से तो मुझे तुम गिराना नहीं।