STORYMIRROR

Sukanta Nayak

Classics

3  

Sukanta Nayak

Classics

बुढ़ापा

बुढ़ापा

1 min
563

हर लम्हे को समेट लूँ

हर जर्रे को अपना बना लूँ

मुट्ठी भर फिसलन कुछ वक्त है,


जीना चाहूँ

बदलते तकदीर जैसे

बेहोशी की जाम पी लूँ।


थिरकती कदमों को

नटखटी शरारतों को

खुद में जी लूँ।


तेरी हर वो चाहत

को पूरा कर दूँ

चाहता हूँ तुझको हर वो

अनचाही खुशियां भी दे दूँ।


अगर तू कहे तो

तुझपे सारी दुनिया वार दूँ।

समय का तकाजा है

हर एक इंसान का अवधि है,


सुबह है तो शाम भी है

सूरज तू कितना भी इतराये

तुझे तो रोज ढलना ही है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics