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Ruchika Nath

Abstract Classics

4.5  

Ruchika Nath

Abstract Classics

यादें

यादें

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ये यादें भी कितनी अजीब हैं ना

इन पे बंदिशें नहीं रस्मों रिवाज़ों को मानने की

इन्हें ना बुलाये जाने की रस्म होती है

ना विदा करने का कोई रिवाज़।


ना खिड़कियों की मोहताजी है

ना दरवाज़ों की दरकार

यादें सिर्फ यादें होती हैं

पर हमारा नजरिया

इनमें भी भेदभाव करता है।


कुछ खूबसूरत यादों को हम

ताउम्र सीने से लगा

बच्चों की तरह सहलाते हैं

और बदसूरत यादों को

खुद से दूर रखने की नाककोशिशें करते रहते हैं 


ये यादें हमारें गुजरे हुए

पलों का हिस्सा होती है

हम माने या न माने बीते हुए कल में भी

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gn-center">उतनी ही सचाई है जितनी इस आज की हक़ीक़त में

इन यादों को झुठलाया नहीं जा सकता।


यादें धूप और छाँव के जैसी होती है

कभी हम किसी की यादों का हिस्सा होते हैं

तो कभी कोई हमारी यादों का हिस्सा होता है

हम अकेले हो कर भी अकेले नहीं।


क्योंकि अकेलेपन में भी ये यादेहमें अकेला नहीं छोड़ती।

यादें सिर्फ तस्वीरों में क़ैद नहीं होती

बल्कि ये तो दिमाग के किसी कोने में छुपकर

अँधेरा होने का इंतज़ार करती हैं।


खैर अच्छा है, इन यादों का सफर

मेरी साँसों तक है बस

 फिर चाह

कर भी ये यादें मुझे याद नही आएँगी|



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