इस दौर का इंसान
इस दौर का इंसान
दिल की आँखें खोल
जब मैं इस दुनिया को देखतीं हूँ
पलकें गीली सी हुईं जाती हैं
साँसें कमतर और कमतर हुई जाती हैं ।
इंसान होने के मायने बदल गये
जज़्बातों से दूर कहीं दूर निकल आयें
बात अब भी लोग फ़रिश्तों ही सी करते हैं
रूह को क़ैद रखा है जिन्होंने सदियों से
एक दौर था जब ख़ुशियाँ कमाई जाती थीं
एक दौर ये भी है जहाँ ख़ुशियाँ खरीदी जाती हैं
जिन्दगी जीने का सलीका है इंसानियत
पाक़ीज़गी का एक ख़ूबसूरत एहसास है इंसानियत
दुआ करती हूँ की वो एहसास घर लौट आये
पुजारी फिर मंदिर के पास लौट आये
क्यूँ बनाया इंसान को ये सोचने पे रब को मजबूर न कर
खुद को "इस दौर "का इंसान बना
शर्मिंदा न कर ।