सलाम ऐ ज़िन्दगी
सलाम ऐ ज़िन्दगी
ज़िन्दगी! काश मैं, तेरी रूह को समझ पाती
तेरी ख़ामियों के संग ही, तुझे अपना पाती ॥
अपने गुनाहों के अक्स को, तेरे पीछे छुपाती
पहले अपने हर दर्द की वजह, मैं तुझको बताती ॥
मेरी आँखों में जब भी नमी आती
ख्वाबों से प्यार कर, तुझे गुस्सा दिखाती ॥
पहले अपनी हर एक कमी छुपाने को तेरी ख़ामियाँ दुनिया को बतलाती
तूने मुझे एक दुनिया दी, उस दुनिया में एक पहचान
ए ज़िन्दगी तेरे हर आगाज़ को, आज मैं अपना इम्तिहान मानती हूँ
तू हारी नहीं, तू हार सकती नहीं
न मानूँगी में भी कभी हार फिर चाहे भोर हो या साँझ
ए ज़िन्दगी तुझे दिल से अपनाने का, अब में बयां करती हूँ
ज़िन्दगी आज मैं तुझे दिल से सलाम करती हूँ।