अनजानी धड़कनें
अनजानी धड़कनें
शाम होते ही मेरे पाँव खीचें ले जाते है मुझ को, मेरे घर की तरफ
आम आदमी हूँ मैं, मेरे घर का पता ही मुझे मेरा पता लगता है
घर का पता इतनी अच्छी तरह से याद है मुझे
की आँखें बंद कर के भी ये रास्ते तय कर कर सकता हूँ मैं ,
रोज़मर्रा का ये सफर में बखूबी तय करता हूँ
इस सफर के दौरान अक्सरहाँ कई वाक़ये पेश आते हैं,
पर मजाल है जो मैंने एक बार भी इन वाक़यों को अपने दिल के
किवाड़ खड़काने दिये हो और मैं ये बताता चलूँ आपको,
की मैं इंसान अच्छा हूँ, पर महसूस थोड़ा कम करता हूँ
फुर्सत ही कहाँ है, अपने अलावा किसी और के दुःख दर्द सुनने की
ईश्वर ने दिल और दिमाग दोनों बराबर जगह ही दिये हैं,
पर दिमाग का इस्तेमाल कर के ही तो में इतनी दूर तक आया हूँ ,
और फिर दिल ने भी कोई खलल नहीं डाला,
धड़कने के अलावा मैंने भी कहाँ, कोई काम लिया है इस से,
कल ही की बात है दो छोटे बच्चे भूख से बिलख रहे थे और गुहार कर रहे थे,
सुना तो यक़ीनन सबने ही था पर ज़ज़्बातों के लिए वक़्त कहाँ से लायें
एक बार को ऐसा लगा भी मुझे, की इनकी कुछ मदद करनी चाहिए ,
फिर मैंने भी वही सोचा जो सब सोचते हैं आखिर मैं ही क्यों?
और भी तो लोग हैं इस भीड़ में कुछ ना कुछ कर ही लेंगें अक्सर ही हम बस अपनी नब्ज़ टटोलते रहते हैं , पर इस नब्ज़ ने हमें इतना कमजोर कर दिया हैकी इसे सिर्फ अपनी धड़कनो की पड़ी है वो अनजानी धड़कने चलती हो या रुक जाएँ,इस से किसको फर्क पड़ता है |
हम बस दौड़ रहे हैं एक अंतहीन रेस के घोड़े हो जैसे ,ये हमारी कमअक्ली नही तो और क्या हैहम में से ही कोई क्रुरता की हदें पार कर देता है, पर हम हैं की अपनी चुप्पी तोड़ने को तैयार ही नहीं,और जब भी हमारी अंतरआत्मा हमसे सवाल पुछती है ,तो हमारा ये जो ईमान है ,
जो मेरे ख्याल से ईमानदार तो कतई नही है उस के पास एक तयशुदा जवाब है,
हम मसीहा थोड़े ही हैं हम तो इंसान हैं , पर मसीहा भी तो हम में से ही एक होता है ,फर्क बस इतना है
उसे अनजान लोगो की धड़कनों को सुनना आता है,क्योंकि उसकी धड़कनों में वो शोरगुल नहीं,जहाँ इंसानियत की आवाज़ बस दफ़्न हो के रह जाती हो,
आपको अपने इंसान होने का वास्ता, अपने अंदर के शोरगुल से बाहर निकलें
इस दुनिया को कोई मसीहा नहीं ,बल्कि आपके अंदर की इंसानियत ही बचा सकती है|
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