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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

Classics

श्रीमद्भागवत -२९१ः भगवान के अवतारों का वर्णन

श्रीमद्भागवत -२९१ः भगवान के अवतारों का वर्णन

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राजा निमि ने पूछा, योगेश्वरो

भगवान की लीलाओं का वर्णन करें

जो वे अभी तक कर चुके हैं

कर रहें हैं या अभी करेंगे वे ।


सातवैं योगेश्वर द्रुमिल जी ने कहा

भगवान अनन्त, उनके गुणों का

कोई मनुष्य किसी प्रकार भी

कभी पार नही पा सकता ।


पाँच भूतों से विराट शरीर,

ब्रह्माण्ड का निर्माण करते वे

अपना अंश अंतर्यामी रूप से

प्रवेश कराते उसमें लीला से ।


उन आदि देव नारायण को

" पुरुष " नाम से कहते हैं

पहला अवतार यही और इसमें

तीनों लोक भी स्थित रहते हैं ।


पहले जगत की उत्पत्ति के लिए

ब्रह्मा बने रजोगुण के अंश से

फिर संसार की स्थिति के लिए

अपने सत्वरूपसे विष्णु बन गए ।


फिर वे ही तमोगुण के अंश से

जगत संहार के लिए रुद्र बने

दक्ष की कन्या मूर्ति और धर्म से

अवतार लिया नर, नारायण रूप में ।


आज भी बद्रिकाआश्रम में

तपस्या करते हुए विराजमान वो

धाम छीनना चाहते तपस्या से

यह भ्रम जब हुआ इंद्र को ।


कामदेव को भेजा उसने

विघन डालने उनकी तपस्या में

जब नर नारायण की महिमा का पता चला

कामदेव भय से कांपने लगे ।


कामदेव को अभयदान देकर

नर नारायण ने कहा फिर उनसे

" हमारा आतिथ्य स्वीकार करो "

कामदेव झुक गए लज्जा से ।


स्तुति की उन्होंने नर नारायण की

वसन्त आदि देवता भी साथ में

बहुत सी रमणियाँ प्रकट कर दी थीं

भगवान ने योगबल से अपने ।


भगवान की सेवा कर रहीं वो

उनके महान सौंदर्य के सामने

सौंदर्य फीका पड़ रहा था

अनुचरों, अप्सराओं का इंद्र के ।


उन सबका सिर झुका हुआ था

भगवान नारायण ने कहा उनसे

अपने अनुरूप ग्रहण कर लो तुम

एक स्त्री को इनमें से ।


और तब उन अनुचरों ने

स्वर्ग की शोभा बढ़ाने के लिए

उनमें से श्रेष्ठ उर्वशी को ग्रहण कर

अपने साथ स्वर्ग लोक ले गए ।


वहाँ जाकर इंद्र को वर्णन किया

जब प्रभाव का नर नारायण के

कथा सुनकर उनकी इंद्र भी

भयभीत और विस्मित हो गए ।


आत्मसाक्षात्कार का उपदेश दिया 

कई कलावतारों में विष्णु ने 

हंस, दत्तात्रेय, सनक, सनंदन

सनातन, सनतकुमार और ऋषभ रूप में ।


हयग्रीव अवतार लेकर उन्होंने

संहार किया मधु, कैटव का

और उद्धार किया था उनके

द्वारा चुराए हुए वेदों का ।


प्रलय के समय मत्स्य अवतार लेकर

रक्षा की औषधियों, धान्य आदि की

वराह अवतार ले पृथ्वी का उद्धार किया

संहार किया हिरण्याक्षका भी ।


कुर्मा अवतार ग्रहण करके फिर

अमृत मंथन करने के लिए

मंद्रराचल धारण किया था

अपनी पीठ पर तब उन्होंने ।


विष्णु के शरणागत और भक्त 

गजेंद्र को छुड़ाया ग्राह से

वालखिल्य ऋषि का उद्धार किया

जब वे गड्ढे में गिर पड़े थे ।


वृतासुर को मारने के कारण

ब्रह्महत्या लगी जब इंद्र को

भगवान ने रक्षा की इंद्र की

असुरों से छुड़ाया देवांगनाओं को ।


नरसिंह बनकर बचाया प्रह्लाद को

मार डाला हिरण्यक्षपु को भी

देवासुर संग्राम में दैत्यों को मारकर

देवताओं की रक्षा भी की ।


विभिन्न विभिन्न मन्वंतरों में

अपनी शक्ति से  कलावतार ग्रहण कर

और त्रिभुवन की रक्षा की

उन्होंने फिर वामन बनकर।


पृथ्वी को बलि से छीन लिया

दे दिया उसे देवताओं को

परशुराम अवतार लेकर पृथ्वी को

इक्कीस बार क्षत्रिहीन किया ।


राम चंद्र अवतार लेकर उन्होंने

समुंदर पर पुल बांधा था

लंका को मटियामेट कर दिया

अहंकार मिटाया था रावण का ।


पृथ्वी का भार उतारने के लिए

अजन्मा होकर भी भगवान ने

यदुवंश में जन्म लिया है

और आगे आएँगे वो बुद्ध रूप में ।


कलियुग के अंत में फिर

कलिक नाम का अवतार लेकर ही

शुद्र राजाओं का वध करेंगे

अनन्त है ये कीर्ति भगवान की ।


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