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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत - २६८; श्री कृष्ण भगवान का इंद्रप्रस्थ पधारना

श्रीमद्भागवत - २६८; श्री कृष्ण भगवान का इंद्रप्रस्थ पधारना

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श्री शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित

श्री कृष्ण के वचनों को सुनकर

महामति उद्धव जी ने विचार किया

नारद, सभासद और कृष्ण के मत पर ।


उद्धव जी कहें, ‘ देवर्षि नारद ने

सलाह जो दी है आपको

कि पांडवों के राजसूय यज्ञ में

उनकी सहायता के लिए सम्मिलित हों ।


ठीक ही है उनका यह कथन कि

अवश्य कर्तव्य शरणागत की रक्षा

इस दृष्टि से विचार करें तो

राजसूय यज्ञ वही कर सकता ।


दशों दिशाओं पर विजय प्राप्त कर ले जो

तो फिर इस यज्ञ के लिए तो

आवश्यक जीतना जरासंध को

इससे हमारा उद्देश्य भी सफल हो ।


बंदी राजा भी मुक्त हों इससे

सुयश की प्राप्ति हो आपको

जरासंध बहुत बलि है, बस

भीमसेन ही हरा सकता उसको ।


जरासंध ब्राह्मण भक्त बड़ा

ब्राह्मण को कोरा जवाब ना दे

भीम ब्राह्मण के वेश में जाकर

युद्ध की भीक्षा माँग ले उससे ।


भगवन, इसमें संदेह नही कि

आपकी उपस्थिति में जो

द्वन्द युद्ध हो उन दोनों में तो

भीमसेन मार डालेगा उसको ।


वध हो उसका आपकी शक्ति से

भीम निमित मात्र बनेंगे

बहुत से प्रयोजन सिद्ध कर देगा

जरासंध का वध फिर ऐसे ।


राजसूय यज्ञ में आप जाना चाहते

इसलिए पहले वहीं पधारिए ‘

परीक्षित, उद्धव की ये सलाह

हितकर, निर्दोष थी सभी प्रकार से ।


देवर्षि नारद, स्वयं कृष्ण और

यदुवंश के बड़े बूढ़ों ने

उनकी बात का समर्थन किया

इंद्रप्रस्थ जाने को तैयार वे ।


रुक्मणी आदि सहस्त्रों पत्नियाँ और

उनकी संतानों को साथ ले

बड़ी भारी सेना के साथ वो

सभी चले वहाँ से रथों में ।


कृष्ण के निश्चय को सुनकर

देवर्षि नारद प्रसन्न हुए

परमानंद में मगन हुआ था

हृदय उनका प्रभु के दर्शन से ।


नारद ने मन ही मन प्रणाम किया उन्हें

तब प्रस्थान किया वहाँ से

“ मार डालूँगा जरासंध को “

कृष्ण कहें नरपतियों के दूत से ।


दूत वहाँ से चला गया और

कृष्ण का संदेश दिया राजाओं को

कारावास से छूटने के लिए

अब कृष्ण की बाट जोहें राजा वो ।


भगवान इंद्रप्रस्थ जा पहुँचे

युधिष्ठिर को ये समाचार मिला तो

रोम रोम आनन्द से भर गया

नगर के बाहर आ गए वो ।


बार बार गले से लगाया

दोनो भुजाओं से आलिंगन किया

भगवान का दर्शन कर उन्हें

पाप तापों से छुटकारा मिल गया ।


परमानन्द में मगन हो गए

छलक आए आंसू नेत्रों में

अंग अंग पुलकित हो गया

मिलकर इस तरह कृष्ण से ।


भीमसेन, नकुल, सहदेव और

अर्जुन ने भी आलिंगन किया उनका

अपने मौसेरे भाई कृष्ण के साथ में

इन्द्रप्रस्थ में सबने प्रवेश किया ।


नगर सुसज्जित हो रहा या और 

युवतियों को जब ये पता चला कि

राजपथ पर कृष्ण आ रहे

सब छोड़ भागी वहाँ वे ।


जी भर कृष्ण के दर्शन किए और

फूलों की वर्षा की उनपर

मन ही मन आलिंगन किया उनका

प्रेम से भर गयीं उन्हें देखकर ।


कृष्ण राजमहल में पधारे

भतीजे को अपने देख कुन्ती का

हृदय प्रेम से भर गया और

कृष्ण को हृदय से लगा लिया ।


द्रोपदी भी थी साथ में उनके

सत्कार किया कृष्ण का द्रोपदि ने

कई महीने तक श्री कृष्ण

इन्द्रप्रस्थ में पांडवों के साथ रहे ।



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