श्रीमद्भागवत-२७०; जरासंध की जेल से छूटे हुए राजाओं की विदाई और भगवान का इन्द्रप्रस्थ लौट आना
श्रीमद्भागवत-२७०; जरासंध की जेल से छूटे हुए राजाओं की विदाई और भगवान का इन्द्रप्रस्थ लौट आना
श्री शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित
अनायास ही जरासंध ने
बीस हज़ार आठ सौ राजाओं को
क़ैद किया भीतर क़िले के।
जब भगवान ने उनको छुड़ाया
भूख से दुर्बल वो हो रहे
जब उन नरपतियों ने देखा
कि भगवान सामने खड़े।
ऐसी स्थिति हो गयी थी उनकी
मानो नेत्रों से उन्हें पी रहे
जीभ से चाट रहे, नासिका से सूंघ रहे
आलिंगन कर रहे बाजुओं से।
सारे पाप धुल चुके उनके
दर्शन से ही कृष्ण के
भगवान के चरणों में सिर रखकर
प्रणाम किया उन्हें सभी ने।
श्री कृष्ण के दर्शन से
इतने आनंदित हुए वे
कि क्लेश रहने का क़ैद में
बिल्कुल ही जाता रहा उनके।
हाथ जोड़कर स्तुति करने लगे
‘ हे सच्चिदानन्द श्री कृष्ण हमारे
नमस्कार करें हम आपको
शरणागतों के पालन हारे।
जरासंध की कारागार से
छुटकारा दिलवाया हमें
जन्म मरण के चक्र से भी
आप हमें दीजिए।
आपकी शरण में आए हम
प्रभु हमारी रक्षा कीजिए
जरासंध का दोष ना मानें कोई हम
आपका बहुत अनुग्रह हुआ ये।
कि हम राजा कहलाने वाले
राजलक्ष्मी से च्युत हो गए
क्योंकि जो राजा उन्मत्त हो जाते
अपने ऐश्वर्या के मद में।
उनको सच्चे सुखकी, कल्याण की
प्राप्ति कभी नही हो सकती
धन सम्पत्ति के नशे में पहले
अंधे हो रहे थे हम भी।
इस पृथ्वी को जीत लेने के लिए
एक दूसरे की होड़ करते थे
और अपनी ही प्रजा का
नाश हम करते रहते थे।
सच्चिदानन्द स्वरूप श्री कृष्ण
बड़ी गहन है गति काल की
वह इतना बलवान है कि
किसी के टाले टालता नही।
अब उसने हम सब को भी
श्री हीन, निर्धन कर दिया
आपकी अहेतुक अनुकम्पा से
घमंड हमारा चूर हो गया।
आपके चरणकमलों का
अब हम स्मरण हैं करते
हमें अब अभिलाषा नही है
राज की जो इस शरीर से भोगें।
अब आप ही उपाय बतलाइए
जिससे आपके चरणकमलों की
सर्वदा स्मृति बनी रहे
विस्मृति ना हो कभी उनकी ‘।
श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित
जब स्तुति की भगवान की ऐसे
तब उन राजाओं को कृष्ण ने
मधुर वाणी में कहा ये।
‘ नरपतियो, सुदृढ़ भक्ति होगी
आज से तुम लोगों की मुझमें
बात तो बिलकुल ठीक है
जो कुछ कहा है तुम लोगों ने।
हैहय, नहुष, वेन,रावण, नरकासुर
और कई देवता नरपति
अपने पद से च्युत हो गए
अपने श्रीमद् के कारण ही।
आसक्ति मत करो अपने शरीर में
पैदा होता जो, मृत्यु भी होती
मन, इंद्रियों को वश में रखकर तुम
रक्षा करो धर्म पूर्वक प्रजा की।
अपना चित मुझमें लगाकर
जो तुम मेरा भजन करोगे
अन्त में तुम लोग सभी
मुझको प्राप्त हो जाओगे ‘।
श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित
जरासंध के पुत्र सहदेव ने
उन राजाओं का सत्कार कर
उनके देशों में भेज दिया उन्हें।
भीमसेन, अर्जुन के साथ कृष्ण
इन्द्रप्रस्थ के लिए चल पड़े
वहाँ पहुँचकर शंख बजाया जब
इन्द्रप्रस्थ वासी प्रसन्न हुए थे।
समझ लिया था उन्होंने ये
कि जरासंध अब मर गया
युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ का संकल्प
एक प्रकार से पूरा हो गया।
